पिया मोरा.. मोरा पिया
मानत नाहिं
मोरा पिया मोसे बोलत नाहिं
द्वार जिया के के खोलत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
दर्पण देखूं, रूप निहारूं
और सोलह श्रृंगार करूँ
फेर नजरिया बैठा बैरी
कैसे अँखियाँ चार करूं
कोई जतन अब, काम ना आवे
उस कछु सोहत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
हमरी इक मुस्कान पे वो तो
अपनी जान लुटाता था
जग बिसरा के आठों पहरिया
मोरे ही गुण गाता था
भा गई का कोई सौतन ओ के
मोरा कुछ भावत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
मानत नाहिं
मोरा पिया मोसे बोलत नाहिं
द्वार जिया के के खोलत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
दर्पण देखूं, रूप निहारूं
और सोलह श्रृंगार करूँ
फेर नजरिया बैठा बैरी
कैसे अँखियाँ चार करूं
कोई जतन अब, काम ना आवे
उस कछु सोहत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
हमरी इक मुस्कान पे वो तो
अपनी जान लुटाता था
जग बिसरा के आठों पहरिया
मोरे ही गुण गाता था
भा गई का कोई सौतन ओ के
मोरा कुछ भावत नाहिं
मोरा पिया मोसे...
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